Wednesday, 20 May 2015

मेरी तन्हाई

मेरी तन्हाई


अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत देर तक यूँ ही चलता रहा
तुम बहुत देर तक याद आते रहे
ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही
और हम भी उसे आज़माते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
ज़ख़्म जब भी कोई ज़हन-ओ-दिल पे लगा
ज़िंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं
चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया
इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया
कितने यादों के भटके हुए कारवाँ
दिल के ज़ख़्मों के दर खटखटाते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
सख़्त हालात के तेज़ तूफानों में
घिर गया था हमारा जुनूने-वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना जलाते रहे
वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे

इश्क जिसने किया सोच ले…

इश्क जिसने किया सोच ले…


आसमां से उतारा गया
जिन्दगी दे के मारा गया
इश्क जिसने किया सोच ले
वो तो बैमौत मारा गया
मेरी महफ़िल से वो क्या गये
साथ में दिल हमारा गया
मुझको साहिल का दे के फ़रेब
मौत के घाट उतारा गया
मौत से भी जो ना मर सका
उसको नज़रों से मारा गया

मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा (Zindagi me to sabhi pyar kiya karte hain)

मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा (Zindagi me to sabhi pyar kiya karte hain)


ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिये थोड़ी है
इक ज़रा सा ग़म-ए-दौरां का भी हक़ है जिस पर
मैनें वो साँस भी तेरे लिये रख छोड़ी है
तुझपे हो जाऊँगा क़ुरबान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
अपने जज़्बात में नग़्मात रचाने के लिये
मैनें धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ
मैं ने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग़
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूँ तो फिर ऐ जान-ए-तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी ख़ुश्बू आये
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

हम उनके लिए जिन्दगानी मिटा दें… (Heart touching ghazal)

हम उनके लिए जिन्दगानी मिटा दें… (Heart touching ghazal)


अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दे
हम उनके लिए जिन्दगानी मिटा दें
हर इक मोड़ पर हम ग़मों को सजा दें
चलो जिन्दगी को मोहब्बत बना दें
अगर खुद को भूले तो कुछ भी न भूले
के चाहत में उनकी खुदा को भुला दें
कभी ग़म की आंधी जिन्हें छू न पाये
वफ़ाओं के हम वो नशेमन बना दें
कयामत के दीवाने कहते हैं हम से
चलो उनके चेहरे से परदा हटा दें
सजा दे सिला दे बना दे मिटा दे
मगर वो कोई फैसला तो सुना दे

वो मिलें या न मिलें हाथ बढ़ाकर देखो… (Heart touching ghazal)

वो मिलें या न मिलें हाथ बढ़ाकर देखो… (Heart touching ghazal)


धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
जिन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में उसे
क्या जरूरी उसे जिस्म बनाकर देखो
पत्थरों में भी जुबां होती है दिल होता है
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजाकर देखो
फासला नज़रों का धोखा भी हो सकता है
वो मिलें या न मिलें हाथ बढ़ाकर देखो

उसे भूल जा उसे भूल जा… (Heart touching ghazal)

उसे भूल जा उसे भूल जा… (Heart touching ghazal)


वो जो मिल गया उसे याद रख
जो नहीं मिला उसे भूल जा
वो तेरे नसीब की बारिशें
किसी और छत पे बरस गईं
दिल-ए-बेख़बर मेरी बात सुन
उसे भूल जा उसे भूल जा
मैं तो गुम था उसके ही ध्यान में
उसकी आस में, उसके गुमान में
हवा कह गई मेरे कान में
मेरे साथ आ उसे भूल जा
जो बिसात-ए-जां उलट गया
वो जो रास्ते से पलट गया
उसे रोकने से हुसूल क्या
उसे मत बुला उसे भूल जा

खिले गुलशन-ए-वफा में गुल-ए-नामुराद ऐसे…

खिले गुलशन-ए-वफा में गुल-ए-नामुराद ऐसे…


ये बहार का जमाना ये हसीं गुलों के साये
मुझे डर है बागबां को कहीं नींद आ न जाए
खिले गुलशन-ए-वफा में गुल-ए-नामुराद ऐसे
ना बहार ही ने पूछा ना खिजां के काम आए
तेरे वादे से कहाँ तक मेरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मेरा दिल ही टूट जाए
मैं चला शराबखाने जहाँ कोई गम नहीं है
जिसे देखनी है जन्नत मेरे साथ-साथ आए

Tuesday, 19 May 2015

सिर्फ अहसास है ये....

सिर्फ अहसास है ये....


आखिर क्या है ऐसा इस नाजुक से शब्द 'प्यार' में कि सुनते ही रोम-रोम में मीठा और भीना अहसास जाग उठता है। जिसे हुआ नहीं, उसकी इच्छा है कि हो जाए, जिसे हो चुका है वह अपने सारे प्रयास उसे बनाए रखने में लगा रहा है। प्रेम, प्यार, इश्क, मोहब्बत, नेह, प्रीति, अनुराग, चाहत, आशिकी, अफेक्शन, लव। ओह! कितने-कितने नाम। और मतलब कितना सुंदर, सुखद और सलोना। आज जैसा कोमल शब्द उस मखमली लगाव का अहसास क्यों नहीं कराता जो वह पहले कराता रहा है? 

जो इन नाजुक भावनाओं की कच्ची राह से गुजर चुका है वही जानता है कि प्यार क्या है? कभी हरी दूब का कोमल स्पर्श, तो कभी चमकते चाँद की उजल‍ी चाँदनी। 

सच्चा प्यार शारीरिक आकर्षण नहीं है, बल्कि सुंदर सजीले रंगों की मनभावन बरखा है प्यार। अपने वेलेंटाइन की एक झलक देख लेने की 'गुलाबी' बेचैनी है प्यार। 'उसके' पास होने अहसास को याद करने की 'नारंगी' इच्छा है प्यार। उसकी आवाज सुनने को तरसते कानों की 'रक्तिम' गुदगुदी है प्यार। 

उसकी कच्ची मुस्कान देखकर दिल में गुलाल की लहर का उठना है प्यार। उसके पहले उपहार से शरबती आँखों की बढ़ जाने वाली चमकीली रौनक है प्यार। कितने रंग छुपे हैं प्यार के अहसास में? 

सूखे हुए फूल की झरी हुई पँखुरी है प्यार। किसी किताब के कवर में छुपी चॉकलेट की पन्नी भी प्यार है और बेरंग घिसा हुआ लोहे का छल्ला भी। प्यार कुछ भी हो सकता है। कभी भी हो सकता है। बस, जरूरत है गहरे-गहरे और बहुत गहरे अहसास की। 

प्यार का अर्थ सिर्फ और सिर्फ देना है। और देने का भाव भी ऐसा कि सब कुछ देकर भी लगे कि अभी तो कुछ नहीं दिया। 

प्यार किसी को पूरी तरह से पा लेने का स्वार्थ नहीं है, बल्कि डेटिंग पर अकेले में एक-दूजे को देखते रहने की भोली तमन्ना है प्यार। बाइक पर अपने साथी से लिपट जाना ही नहीं है प्यार, एक-दूसरे का मासूम सम्मान और गरिमा है प्यार। उधार लेकर महँगे गिफ्ट खरीदना ही नहीं है प्यार, बल्कि अपनी सैलेरी से खरीदा भावों से भीगा एक सूर्ख गुलाब भी है प्यार। 

प्यार को और क्या नाम दिए जाएँ, वह तो बस प्यार है, उसे पनपने के लिए 'स्पेस' दीजिए। वेलेंटाइन डे के मौके पर प्यार जैसी खूबसूरत अनुभूति को खत्म मत कीजिए। बल्कि इस दिन से इस कोमल भावना के सम्मान का संकल्प लीजिए। इसे खेलने की चीज नहीं बनाएँ बल्कि खुशी और खिलखिलाहट की वजह बने रहने दीजिए।

माँ

माँ


बेसन की सौंधी रोटी पर 
खट्टी चटनी-जैसी माँ 
याद आती है चौका-बासन 
चिमटा, फुँकनी-जैसी माँ 
बान की खुरीं खाट के ऊपर 
हर आहट पर कान धरे 
आधी सोई आधी जागी 
थकी दोपहरी-जैसी माँ 
चिड़ियों की चहकार में गूँजे 
राधा-मोहन, अली-अली 
मुर्गे की आवाज से खुलती 
घर की कुंडी-जैसी माँ 
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन 
थोड़ी-थोड़ी-सी सब में 
दिन भर इक रस्सी के ऊपर 
चलती नटनी-जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा, माथा 
आँखें जाने कहाँ गई 
फटे-पुराने इक अलबम में 
चंचल लड़की-जैसी माँ।

प्यारे वतन के लिए

प्यारे वतन के लिए


जानो-दिल कुर्बान है, मादरे हिन्द के अमन के लिए।
कस ली है कमर हमने आतंकियों के शमन के लिए॥

जननी से भी बढ़कर हमें है मुहब्बत भारत भूमि से।
इसकी खातिर हंसते-गाते चढ़ गए शहीद सूली पे।

भारत मां की अस्मत पर न उठने देंगे गलत निगाह,
हिफाजत में कटा देंगे सर, प्यारे वतन के लिए।
जानो-दिल कुर्बान है.....

भिन्ना जाति-भिन्न धर्म के खिलते हैं फूल यहां।
इतना सुन्दर मुल्क है दुनिया में और कहां?

उजड़ने न देंगे कभी ये सुन्दर गुलों की क्यारियां,
बहा देंगे हर कतरा खूं का इस बागे-चमन के लिए।
जानो-दिल कुर्बान है.....

सबसे अनूठी है भारत की तहजीब औ" रवायत।
सदा इस पर रही है रब की नेमत औ" इनायत।

हिन्दोस्तां को बनाएंगे हम दुनिया का सिरमौर,
हर इक शख्स जुटा है यहां इस सपन के लिए।
जानो-दिल कुर्बान है.....

नुक्स कभी न आने देंगे हिन्दोस्तां की शान में।
जिसको भी आना हो वो आ जाए मैदान में।

हम अगर जो बिगड़े तो फिर एक ही आन में,
लाखों तरसेंगी लाशें खुद अपने कफन के लिए।
जानो-दिल कुर्बान है.....

अवाम को नाज है अपने प्यारे तिरंगे पर।
मरने को तैयार हैं हम इसकी आनो-बान पर।

इसके फहराने से होता ऊंचा मस्तक हर एक का,
ख्वाब में भी सोच न सकते हम इसके पतन के लिए।
जानो-दिल कुर्बान है.....

नमन तुमको देश मेरा

नमन तुमको देश मेरा


सूर्य चंदा और तारे
के सुखद मनहर नजारे 
हैं सजाते देश को नित
स्वर्ण किरणों के सहारे,
गोधुली जिसकी सुहानी
सुखद है जिसका सवेरा
नमन तुमको देश मेरा।
अहा! पर्वत और घाटी 
धन्य अपनी धूल माटी
अर्चना में लिप्त जिसकी
वेद मंत्रों के सुपाठी,
देवताओं की धरा यह
साधु-संतों का बसेरा
नमन तुमको देश मेरा
हम चले सबको जगाने
जागरण का गीत गाने 
विश्वगुरु फिर से बनाने, 
उठ गए हैं हम धरा से
अब मिटाने को अंधेरा
नमन तुमको देश मेरा

लंच टाइम की दोस्ती

लंच टाइम की दोस्ती


ढेर सारी फाइलों और टारगेट का दबाव हो या फिर अभी-अभी पड़ी बॉस की झाड़... घर में सास-बहू की शिकवे-शिकायत हों या फिर अपने किसी बीमार के लिए दिल में पल रही चिंता...। कार्यालय में लंच टाइम की दोस्ती सब पर मरहम का काम करती है। 

यहां लंच टाइम में आपस के सुख-दुख भी बंट जाते हैं और कई बार तो ऐसे ही कोई मिसेस वर्मा अपनी सहयोगी की बिटिया के लिए वर ढूंढ देती हैं या फिर पिछले महीने से फोन के कनेक्शन के लिए भटक रहे जोगिन्दर साहब के सहयोगी (जिनके परिचित उसी विभाग में हैं) मिनटों में 'कनेक्शन' करवा देते हैं। 

कंचों के अंदर गुंथी हुई रंग-बिरंगी दुनिया से लेकर फेसबुक तक और टिफिन से लेकर एक्जाम के 'आईएमपी' क्वेशचन्स के बंटवारे तक... दोस्ती न किसी नियम में बंधती है, न ही कायदे में। 

वो दोस्ती ही क्या, जहां सरहदें रुकावट बन जाएं या भाषा और मजहब आड़े आ जाएं। इसीलिए तो दोस्ती का न कोई और पर्यायवाची है, न होगा, जो है वो बस शब्दों में ही सीमित है और दोस्ती की दुनिया तो शब्दों से कहीं बड़ी, फैली और अंतहीन है। इस दुनिया के ढेर सारे रंगों में से कुछ की आज सैर करते हैं।

लाड़ली बेटी है ये हिन्दी

लाड़ली बेटी है ये हिन्दी


संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी।
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।

सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।

पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।

पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।

तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।

वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।

अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।

यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं, 
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

दद्दू का दरबार : शीतला सप्तमी

दद्दू का दरबार : शीतला सप्तमी


प्रश्न: दद्दू, गृहणियों के बीच शीतला माता के पूजन के लिए सुबह-सुबह मुंह अंधेरे निकल पड़ने की होड़ क्यों लगी रहती है? 

उत्तर : लंबी लाइन में लगने से हर कोई बचना चाहता है, अवसर चाहे माता पूजन का हो या फिर राशन का, फिल्म अथवा क्रिकेट मैच के टिकट पाने का।

ऐसी स्थिति को सुगम बनाने के लिए आजकल ऑनलाइन पूजन/दर्शन शुरू तो हो ही चुका है तथा भविष्य में प्रचलित होकर सामान्य हो जाएगा। 

ब्युटीफुल रेड अंडवियर

ब्युटीफुल रेड अंडवियर


शिक्षक (मोहन से) : अपने मित्र का नाम अंग्रेजी में लिखकर बताओ?

मोहन ने लिखकर बताया- 'ब्युटीफुल रेड अंडवियर।'
 
शिक्षक (क्रोधित होकर) : ये क्या मूर्खता है?
 
मोहन- दरअसल मेरे मित्र का नाम सुन्दरलाल चड्ढा है।

पाप का प्रा‍यश्चित

पाप का प्रा‍यश्चित


एक पंडितजी प्रवचन देते हुए कह रहे थे कि-

...

.... पिछले जन्म में किए गए पाप का प्रा‍यश्चित हमें करना पड़ता है और उसका फल भी इस जन्म में भुगतना पड़ता है। 
 
तभी प्रवचन सुन रहे चिंटू ने बगल में बैठे अपने मित्र ‍मिंकू से कहा- अब समझ में आया कि शिक्षिका हमें गृहकार्य क्यों देती है?

कैसे मामा हो तुम चंदा

कैसे मामा हो तुम चंदा


कैसे मामा हो तुम चंदा, कभी हमारे घर न आए।
न ही भेजी चिट्ठी-पाती, न ही टेलीफोन लगाए। 


 
कभी हमारे घर तो आते, मां से राखी तो बंधवाते। 
तभी भांजा कहलाता मैं, तभी आप मामा कहलाते। 
अपनी जीवनकथा हमें क्यों, नहीं कभी सूचित कर पाए। 
 
खीर-पूड़ी तुमने है खाई, मेरी मां से ही बनवाई। 
कहते हुए बहुत दुःख तुमने, रिश्तेदारी नहीं निभाई। 
बोलो मुझे किसी मेले से, कितनी बार खिलौने लाए?
 
शहरों में तो याद तुम्हारी, भूले-बिसरे गीत हो गई।
चांद चांदनी हुए लापता, बिजली मन की मीत हो गई। 
अपनी करनी से तुम मामा, दिन पर दिन जा रहे भुलाए। 
 
अभी गांव-छोटे कस्बों में, झलक तुम्हारी दिख जाती है। 
शरद पूर्णिमा को मामाजी, याद तुम्हारी आ जाती है। 
नए जमाने की नई पीढ़ी, मुश्किल है तुमको भज पाए। 
 
किसे समय है आसमान में, ऊपर चांद-सितारे देखे। 
बिजली की चमचम के कारण, देखे भी होते अनदेखे। 
शायद याद तुम्हारी पुस्तक, कॉपी तक सीमित रह जाए। 
 
लोग तुम्हारी छाती को ही, पैरों से अब कुचल रहे हैं। 
और तुम्हारी धरती पर ही, अब रहने को मचल रहे हैं। 
बहुत कठिन है देह तुम्हारी, पहले सी पवन रह पाए।

आपकी खामोशियां...

आपकी खामोशियां...


बहुत कुछ हमसे कह गई 
आपकी खामोशियां...
दिल में आकर उतर गई
आपकी खामोशियां...
बहुत कुछ हमसे कह गई... 

नजरें मिलाना फिर मुस्कुराना 
धीरे से पलकों को नीचे झुकाना 
ये फिर से लाई है बहुत कुछ 
मेरी जिंदगी में नजदीकियां 
बहुत कुछ हमसे कह गई 
आपकी खामोशियां...
 
रह गई है याद तेरी 
और कुछ बाकी न ही
रात भर है करवट बदलते
नींद है आती न ही 
इस कदर हमको रुलाती 
आपकी खामोशियां...
 
दिल में उतरकर गीत सुनाती
आपकी खामोशियां...
हौले से कुछ है समझाती 
आपकी खामोशियां...
 
सपने में भी बस ये जाती 
आपकी खामोशियां...
फूल-सी है मुस्कराती 
आपकी खामोशियां...।

चटपटा रोमांटिक चुटकुला : हमारी शादी...

चटपटा रोमांटिक चुटकुला : हमारी शादी...


गर्लफ्रेंड (बॉयफ्रेंड से) - डार्लिंग, तुमसे शादी करने के बाद मैं तुम्हारी सारी चिंता और सारे दुख बाटूंगी और तुम्हारा बोझ हल्का करना चाहूंगी। तुम क्या कहते हो? 
 
बॉयफ्रेंड- प्रिये, तुम्हारी सोच तो बहुत अच्छी है, परंतु मेरे पास चिंता-दुख कुछ भी नहीं हैं। 
 
गर्लफ्रेंड- जानेमन, वो इसलिए कि अभी तक हमारी शादी नहीं हुई है ना। 

चटपटा चुटकुला : अप्रैल फूल बनाया...

चटपटा चुटकुला : अप्रैल फूल बनाया...

घोंचू (अपने दोस्त पोंचू से) : यार जानते हो...! अप्रैल की पहली तारीख किसी भी लड़की को प्रपोज करने का सबसे सही दिन होता है।
 
पोंचू- ऐसा क्यों...?
 
घोंचू- क्योंकि अगर वह मान गई तो ठीक...! नहीं तो कह दो, अप्रैल फूल बनाया!

प्रेम काव्य : जो जान है हमारी...

प्रेम काव्य : जो जान है हमारी...


समा गए हैं दिल में, 
समावेश कर चुकी हूं।
 
उन्हीं का साथ देने इस, 
जमीं पर मैं रुकी हूं।
 
वरना चली मैं जाती, 
पथ से नहीं डिगी हूं।
 
अधरों पर अधर रख के, 
रसपान जो कराती हूं।
 
सोते हैं जब-जब साजन, 
पंखा खुद डोलाती हूं। 
 
जो जान है हमारी, 
उनके रंग में रंगी हूं। 

समझ नहीं पाता हूं दिल की जुबान को....

समझ नहीं पाता हूं दिल की जुबान को....


समझ नहीं पाता हूं।।
कैसे तुम्हें बताऊं।।
तुम्हारे निशान को।।

लगता डर हमें।।
नाराज न हो जाओ।।
मेरी तस्वीर ले के।।
तहलका न मचाओ।।
 
तुम्हीं हमें बता दो।।
मेरे ईमान को।।
बदनाम नहीं करूंगा।।
तुम्हारे नाम को।।
 
बचपन से जवानी की।।
कहानी पढ़ लिया हूं।।
महकती काली ओ तुम हो।।
तुमसे मिल लिया हूं।।
 
अपना तो अब समझ लो।।
आशिक नादान को।।

Monday, 18 May 2015

ज्ञानविधि क्या है?

ज्ञानविधि क्या है?
ज्ञानविधि सिर्फ दो घंटो में आत्मज्ञान प्राप्त करने का एक सरल वैज्ञानिक प्रयोग है। यह ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री(श्री अंबालाल एम. पटेल, जो "दादा भगवान" के नाम से पहचाने जाते हैं) की अलौकिक कृपा का फल है।
आत्मज्ञान का मतलब खुद के सच्चे स्वरूप को जानना अर्थात् 'आत्मा' की जागृति में आना। अगर आपसे कोई पूछे की आपका नाम क्या है? तो आप कहेंगे कि 'चंदूलाल'। आपको याद नहीं रखना पड़ता कि मेरा नाम 'चंदूलाल' है। अगर कोई चंदूलाल के बारे में भला-बुरा कहे तो आपको दुःख होता है। आपको यह सोचकर दुःख होता है कि यह व्यक्ति मुझे भला-बुरा क्यों कह रहा है?
ऐसा इसलिए होता है कि अभी आप मानते है कि 'मैं ही चंदूलाल हूँ' और जब आप आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं तो सिर्फ दो ही घंटों में ज्ञानीपुरुष दादा भगवान की कृपा से आपकी यह बिलीफ कि मैं चंदूलाल हूँ, टूट जाती है। और राइट बिली़फ, कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' आपके अंदर बैठ जाती है। ज्ञान प्राप्त करने के इस प्रयोग को ज्ञानविधि कहते हैं। इससे आपकी बाहर की दुनिया में कुछ नहीं बदलता। सिर्फ अंदर की यह जागृति कि चंदूलाल अलग है और 'मैं शुद्धात्मा हूँ', शुरू हो जाती है।

ज्ञानविधि कौन ले सकते हैं?

अठारह वर्ष या उस से अधिक उम्र के किसी भी जाति और धर्म के लोग आत्मज्ञान ले सकते हैं। ज्ञान लेने के लिए आपको गुरु या धर्म बदलने की आवश्यकता नहीं है। ज्ञानीपुरुष आपको आत्मज्ञान करवा देते हैं और मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए आपको मार्गदर्शन देते हैं। ज्ञानीपुरुष की बातें हर एक व्यक्ति के काम की हैं। भले ही वह किसी भी धर्म का पालन करते हों।

ज्ञानविधि प्राप्त करने के लिए कोई शुल्क है?

ज्ञानविधि एक अमूल्य भेंट है, जिसका कोई शुल्क नहीं है।

बिहारी के दोहे

बिहारी के दोहे

मेरी भवबाधा हरो राधा नागरि सोय।
जा तन की झाई परे, श्याम हरित दुति होय॥
मोर मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल।
यहि बानिक मो मन बसो सदा बिहारीलाल॥
मोहनि मूरत स्याम की अति अद्भुत गति जोय।
बसति सुचित अन्तर तऊ प्रतिबिम्बित जग होय॥
सघन कुंज छाया सुखद सीतल मन्द समीर।
मन ह्वै जात अजौं बहैं वा जमुना के तीर॥
सोहत ओढ़ैं पीतपट स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमनि सैल पर आतप पर्यौ प्रभात॥
किती न गोकुल कुलबधू काहि न किन सिख दीन।
कौने तजी न कुल गली ह्वै मुरली सुर लीन॥
अधर धरत हरिकै परत ओठ डीठि पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी इन्द्रधनुष द्युति होति॥
झूठे जानि न संग्रहे मन मुँह निकसे बैन।
याही ते मानहु किये बातनुकौ ति विधि नैन॥
बेसरि मोती दुति छलक परी अधर पै आय।
चूनो हो न चतुर तिय क्यों पट पोछो जाय॥
हरि छबि जब जब तें परे तब तें छिन बिछुरैन।
मरत ढरत बूड़त तिरत रहँट घरी लौं नैन॥
नेह न नैनन को कछू उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नितप्रति रहैं तऊ न प्यास बुझाय॥
या अनुरागी चित्त की गति समझे नहिं कोय।
ज्यौं ज्यौं बूड़ै स्याम रंगब त्यौं त्यौं उज्जलु होय॥
जो न जुगुति पिय मिलन की धूरि मुकुति मुख दीन।
जो लहिए सँग सजन तौ सरग नरक हूँ कीन॥
लोभ लगे हरि रूप के करी साँठ जरि जाइ।
हौं इन बेची बीच ही लोयन बड़ी बलाइ॥
लाल तिहारे रूप की कहौ रीति यह कौन।
जासौं लागत पलक दृग लागे पलक पलौन॥
इन दुखिया अँखियान की सुख सिरज्यौई नाहि।
देखत बनै न देखते बिन देखे अकुलाहिं॥
चटक न छाँड़त घटत हूँ सज्जन नेह गँभीर।
फीकी परै न वरु फटै रँग्यौ चोस रंग चीर॥
दुसह दुराज प्रजान को क्यों न बढ़ैं दुख दन्द।
अधिक अँधेरो जग करै मिलि मावस रविचन्द॥
बड़ै न टूजै गुनन बिन बिरद बढ़ाई पाइ।
कहत धतूरे सौं कनक गहनो गढ़्यौ जाइ॥
नर की अरु नल नीर की एकै गति करि जोइ।
जेतौ नीचौ ह्वै चलै तेतौ ऊँचो होइ॥
बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाइ।
घटत घटत सु न फिरि घटै बरु समूल कुम्हलाइ॥
जो चाहत चटक न घटै मैलो होय न मित्त।
रज राजस न छवाइये नेह चीकनो चित्त॥
जप माला छापा तिलक सरै न एकौ काम।
मन काँचे नाचै बृथा साँचै राँचै राम॥
दीरघ साँस न लेहि दुख सुख साईहीं न भूल।
दई दई क्यों करतु है दई दई सु कबूल॥
कबको टेरत दीन व्है होत न स्याम सहाय।
तुमहू लागी जगतपति जगनायक जग बाय॥
करौ कुबत जग कुटिलता तजौ न दीनदयाल।
दुखी होहुगे सरल हिय बगत त्रिभंगी लाल॥