Monday, 18 May 2015

अवधेस के द्वारे सकारे गई

अवधेस के द्वारे सकारे गई


अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से॥
‘तुलसी’ मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से।
सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे॥
तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धरैं॥
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यों किलकैं कल बाल बिनोद करैं।
अवधेस के बालक चारि सदा ‘तुलसी’ मन मंदिर में बिहरैं॥
वर दन्त की पंगति  कुंद कली,अधराधर पल्लव खोलन की ।
चपला चमके घन बीच  जगे, ज्यूँ मोतिन माल अमोलन की॥
घुन्घरारी लटें  लटकें मुख  ऊपर    ,कुंडल लोल कपोलन की।
न्योछावरी प्राण करें तुलसी, बलि जाऊं लला इन बोलन की॥

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