Tuesday, 19 May 2015

माँ

माँ


बेसन की सौंधी रोटी पर 
खट्टी चटनी-जैसी माँ 
याद आती है चौका-बासन 
चिमटा, फुँकनी-जैसी माँ 
बान की खुरीं खाट के ऊपर 
हर आहट पर कान धरे 
आधी सोई आधी जागी 
थकी दोपहरी-जैसी माँ 
चिड़ियों की चहकार में गूँजे 
राधा-मोहन, अली-अली 
मुर्गे की आवाज से खुलती 
घर की कुंडी-जैसी माँ 
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन 
थोड़ी-थोड़ी-सी सब में 
दिन भर इक रस्सी के ऊपर 
चलती नटनी-जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा, माथा 
आँखें जाने कहाँ गई 
फटे-पुराने इक अलबम में 
चंचल लड़की-जैसी माँ।

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