गिरधर की कुण्डलिया
साईं या संसार में मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार संग ही संगमें डोलें।
पैसा रहा न पास यार मुखसे नहीं बोलें॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय जगत यही लेखा भाई।
बिनु बेगरजी प्रीति यार बिरला कोई साईं॥
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार संग ही संगमें डोलें।
पैसा रहा न पास यार मुखसे नहीं बोलें॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय जगत यही लेखा भाई।
बिनु बेगरजी प्रीति यार बिरला कोई साईं॥
बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछताय।
काम बिगारे आपनो जग में होत हँसाय॥
जग में होत हँसाय चित्त में चैन न पावै।
खान पान सम्मान राग रंग मनहि न भावै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय दुःख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माँहि कियो जो बिना बिचारे॥
काम बिगारे आपनो जग में होत हँसाय॥
जग में होत हँसाय चित्त में चैन न पावै।
खान पान सम्मान राग रंग मनहि न भावै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय दुःख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माँहि कियो जो बिना बिचारे॥
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय।
जो बनि आवै सहज में ताही में चित देय॥
ताही में चित देय बात जोइ बनि आवै।
दुर्जन हँसे न कोइ चित्त में खता न पावै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि अब गई बीती सो बीती॥
जो बनि आवै सहज में ताही में चित देय॥
ताही में चित देय बात जोइ बनि आवै।
दुर्जन हँसे न कोइ चित्त में खता न पावै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि अब गई बीती सो बीती॥
रहिये लटपट काटि दिन बरु घामें माँ सोय।
छाँह न वाकी बैठिये जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय एक दिन धोखा दैहै।
जा दिन बहै बयारि टूटि तब जर से जैहै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय छाँह मोटे की गहिये।
पत्ता सब झरि जाय तऊ छाया में रहिये॥
छाँह न वाकी बैठिये जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय एक दिन धोखा दैहै।
जा दिन बहै बयारि टूटि तब जर से जैहै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय छाँह मोटे की गहिये।
पत्ता सब झरि जाय तऊ छाया में रहिये॥
गुनके गाहक सहस नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को इक रंग काग सब गनै अपावन॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥
जैसे कागा कोकिला शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को इक रंग काग सब गनै अपावन॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥
साईं अपने चित्त की भूलि न कहिये कोइ।
तब लगि मन में राखिये जब लगि कारज होइ॥
जब लगि कारज होइ भूलि कबहूँ नहिं कहिये।
दुर्जन हँसै न कोय आप सियरे ह्वै रहिये॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय बात चतुरन के तार्ईं।
करतूती कहि देत आप नहिं कहिये साईं॥
तब लगि मन में राखिये जब लगि कारज होइ॥
जब लगि कारज होइ भूलि कबहूँ नहिं कहिये।
दुर्जन हँसै न कोय आप सियरे ह्वै रहिये॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय बात चतुरन के तार्ईं।
करतूती कहि देत आप नहिं कहिये साईं॥
चिंता ज्वाल सरीर की, दाह लगे न बुझाय।
प्रकट धुआँ नहिं देखिए, उर अंतर धुँधुवाय॥
उर अंतर धुँधुवाय, जरै जस काँच की भट्ठी।
रक्त मांस जरि जाय, रहै पिंजरि की ठट्ठी॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय, सुनो रे मेरे मिंता।
ते नर कैसे जियै, जाहि व्यापी है चिंता॥
प्रकट धुआँ नहिं देखिए, उर अंतर धुँधुवाय॥
उर अंतर धुँधुवाय, जरै जस काँच की भट्ठी।
रक्त मांस जरि जाय, रहै पिंजरि की ठट्ठी॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय, सुनो रे मेरे मिंता।
ते नर कैसे जियै, जाहि व्यापी है चिंता॥
दौलत पाय न कीजिये सपनेहु में अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको ठाउँ न रहत निदान॥
ठाँउँ न रहत निदान जियत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय विनय सब ही की कीजै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत॥
चंचल जल दिन चारिको ठाउँ न रहत निदान॥
ठाँउँ न रहत निदान जियत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय विनय सब ही की कीजै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत॥
साईं ये न विरुद्धिये गुरु पंडित कवि यार।
बेटा बनिता पौरिया यज्ञ करावनहार॥
यज्ञ करावनहार, राजमंत्री जो होई।
विप्र परोसी बैद, आपकी जो तपै रसोई॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय युगन ते यह चलि आई।
इन तेरह सों तरह दिए नहिं बनि आवै साईं॥
बेटा बनिता पौरिया यज्ञ करावनहार॥
यज्ञ करावनहार, राजमंत्री जो होई।
विप्र परोसी बैद, आपकी जो तपै रसोई॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय युगन ते यह चलि आई।
इन तेरह सों तरह दिए नहिं बनि आवै साईं॥
साईं अपने भ्रात को कबहुँ न दीजै त्रास।
पलक दूर नहिं कीजिये सदा राखिये पास॥
सदा राखिये पास त्रास कबहूँ नहिं दीजै।
त्रास दियो लंकेश ताहि की गति सुन लीजै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय राम सों मिलियो जाई।
पाय विभीषण राज लंकपति बन्यो साईं।
पलक दूर नहिं कीजिये सदा राखिये पास॥
सदा राखिये पास त्रास कबहूँ नहिं दीजै।
त्रास दियो लंकेश ताहि की गति सुन लीजै॥
कह ‘गिरिधर’ कविराय राम सों मिलियो जाई।
पाय विभीषण राज लंकपति बन्यो साईं।
साईं घोड़े आछतहि गदहन आयो राज।
कौआ लीजै हाथ में दूरि कीजिये बाज॥
दूरि कीजिये बाज राज पुनि ऐसो आयो ।
सिंह कीजिये कैद स्यार गजराज चढायो॥
कह गिरिधर कविराय जहाँ यह बूझि बधाई।
तहाँ न कीजै भोर साँझ उठि चलिए साईं॥
कौआ लीजै हाथ में दूरि कीजिये बाज॥
दूरि कीजिये बाज राज पुनि ऐसो आयो ।
सिंह कीजिये कैद स्यार गजराज चढायो॥
कह गिरिधर कविराय जहाँ यह बूझि बधाई।
तहाँ न कीजै भोर साँझ उठि चलिए साईं॥
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