बिहारी के दोहे
मेरी भवबाधा हरो राधा नागरि सोय।
जा तन की झाई परे, श्याम हरित दुति होय॥
जा तन की झाई परे, श्याम हरित दुति होय॥
मोर मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल।
यहि बानिक मो मन बसो सदा बिहारीलाल॥
यहि बानिक मो मन बसो सदा बिहारीलाल॥
मोहनि मूरत स्याम की अति अद्भुत गति जोय।
बसति सुचित अन्तर तऊ प्रतिबिम्बित जग होय॥
बसति सुचित अन्तर तऊ प्रतिबिम्बित जग होय॥
सघन कुंज छाया सुखद सीतल मन्द समीर।
मन ह्वै जात अजौं बहैं वा जमुना के तीर॥
मन ह्वै जात अजौं बहैं वा जमुना के तीर॥
सोहत ओढ़ैं पीतपट स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमनि सैल पर आतप पर्यौ प्रभात॥
मनौ नीलमनि सैल पर आतप पर्यौ प्रभात॥
किती न गोकुल कुलबधू काहि न किन सिख दीन।
कौने तजी न कुल गली ह्वै मुरली सुर लीन॥
कौने तजी न कुल गली ह्वै मुरली सुर लीन॥
अधर धरत हरिकै परत ओठ डीठि पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी इन्द्रधनुष द्युति होति॥
हरित बाँस की बाँसुरी इन्द्रधनुष द्युति होति॥
झूठे जानि न संग्रहे मन मुँह निकसे बैन।
याही ते मानहु किये बातनुकौ ति विधि नैन॥
याही ते मानहु किये बातनुकौ ति विधि नैन॥
बेसरि मोती दुति छलक परी अधर पै आय।
चूनो हो न चतुर तिय क्यों पट पोछो जाय॥
चूनो हो न चतुर तिय क्यों पट पोछो जाय॥
हरि छबि जब जब तें परे तब तें छिन बिछुरैन।
मरत ढरत बूड़त तिरत रहँट घरी लौं नैन॥
मरत ढरत बूड़त तिरत रहँट घरी लौं नैन॥
नेह न नैनन को कछू उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नितप्रति रहैं तऊ न प्यास बुझाय॥
नीर भरे नितप्रति रहैं तऊ न प्यास बुझाय॥
या अनुरागी चित्त की गति समझे नहिं कोय।
ज्यौं ज्यौं बूड़ै स्याम रंगब त्यौं त्यौं उज्जलु होय॥
ज्यौं ज्यौं बूड़ै स्याम रंगब त्यौं त्यौं उज्जलु होय॥
जो न जुगुति पिय मिलन की धूरि मुकुति मुख दीन।
जो लहिए सँग सजन तौ सरग नरक हूँ कीन॥
जो लहिए सँग सजन तौ सरग नरक हूँ कीन॥
लोभ लगे हरि रूप के करी साँठ जरि जाइ।
हौं इन बेची बीच ही लोयन बड़ी बलाइ॥
हौं इन बेची बीच ही लोयन बड़ी बलाइ॥
लाल तिहारे रूप की कहौ रीति यह कौन।
जासौं लागत पलक दृग लागे पलक पलौन॥
जासौं लागत पलक दृग लागे पलक पलौन॥
इन दुखिया अँखियान की सुख सिरज्यौई नाहि।
देखत बनै न देखते बिन देखे अकुलाहिं॥
देखत बनै न देखते बिन देखे अकुलाहिं॥
चटक न छाँड़त घटत हूँ सज्जन नेह गँभीर।
फीकी परै न वरु फटै रँग्यौ चोस रंग चीर॥
फीकी परै न वरु फटै रँग्यौ चोस रंग चीर॥
दुसह दुराज प्रजान को क्यों न बढ़ैं दुख दन्द।
अधिक अँधेरो जग करै मिलि मावस रविचन्द॥
अधिक अँधेरो जग करै मिलि मावस रविचन्द॥
बड़ै न टूजै गुनन बिन बिरद बढ़ाई पाइ।
कहत धतूरे सौं कनक गहनो गढ़्यौ जाइ॥
कहत धतूरे सौं कनक गहनो गढ़्यौ जाइ॥
नर की अरु नल नीर की एकै गति करि जोइ।
जेतौ नीचौ ह्वै चलै तेतौ ऊँचो होइ॥
जेतौ नीचौ ह्वै चलै तेतौ ऊँचो होइ॥
बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाइ।
घटत घटत सु न फिरि घटै बरु समूल कुम्हलाइ॥
घटत घटत सु न फिरि घटै बरु समूल कुम्हलाइ॥
जो चाहत चटक न घटै मैलो होय न मित्त।
रज राजस न छवाइये नेह चीकनो चित्त॥
रज राजस न छवाइये नेह चीकनो चित्त॥
जप माला छापा तिलक सरै न एकौ काम।
मन काँचे नाचै बृथा साँचै राँचै राम॥
मन काँचे नाचै बृथा साँचै राँचै राम॥
दीरघ साँस न लेहि दुख सुख साईहीं न भूल।
दई दई क्यों करतु है दई दई सु कबूल॥
दई दई क्यों करतु है दई दई सु कबूल॥
कबको टेरत दीन व्है होत न स्याम सहाय।
तुमहू लागी जगतपति जगनायक जग बाय॥
तुमहू लागी जगतपति जगनायक जग बाय॥
करौ कुबत जग कुटिलता तजौ न दीनदयाल।
दुखी होहुगे सरल हिय बगत त्रिभंगी लाल॥
दुखी होहुगे सरल हिय बगत त्रिभंगी लाल॥
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