Monday, 18 May 2015

रहीम के दोहे

रहीम के दोहे (Raheem ke Dohe)


दीन सबन को लखत है, दीनहि लखै न कोय।
जो रहीम दीनहि लखै, दीनबन्धु सम होय॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुरै, जुरै गाँठि परि जाय॥
चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछू न चाहिए, वे शाहन के शाह॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
बड़े बड़ाई ना करे, बड़े ना बोले बोल।
रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मेरो मोल॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
छिमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।
कहि रहीम हरि का गयो, जो भृगु मारी लात॥
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय॥
जे गरीब परहित करैं, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
रहिमन ओछे नरन ते, तजहु बैर अरु प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति बिपरीत॥
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमन्त को, गिरिधर कहै न कोय॥
टूटे सजन मनाइये, जो टूटै सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुकताहार॥
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहिं फलहिं अघाय॥
खैर खून खाँसी खुसी, बैर प्रीत मदपान।
रहिमन दाबे ना दबे, जानत सकल जहान॥
रहिमन वे नर मर चुके, जो कछु माँगन जाहि।
उनसे पहले वे मरे, जिन मुख निकसत नाहि॥
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलहिं न राम॥
रहिमन विदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥

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