Wednesday, 20 May 2015

मेरी तन्हाई

मेरी तन्हाई


अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत देर तक यूँ ही चलता रहा
तुम बहुत देर तक याद आते रहे
ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही
और हम भी उसे आज़माते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
ज़ख़्म जब भी कोई ज़हन-ओ-दिल पे लगा
ज़िंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं
चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया
इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया
कितने यादों के भटके हुए कारवाँ
दिल के ज़ख़्मों के दर खटखटाते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
सख़्त हालात के तेज़ तूफानों में
घिर गया था हमारा जुनूने-वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना जलाते रहे
वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे

No comments:

Post a Comment