मनहर बंशी बजाई श्याम ने… (Manhar banshi bajai Shyam ne…)
मनहर बंशी बजाई
श्याम ने मनहर बंशी बजाई
श्याम ने मनहर बंशी बजाई
रवि रथ अटक रहो मंडल में
शिव की ध्यान छुड़ाई
शिव की ध्यान छुड़ाई
श्याम ने मनहर बंशी बजाई
पुष्पक विमान गिरे धरनी पर
पवन रहे अलसाई
पवन रहे अलसाई
श्याम ने मनहर बंशी बजाई
बंशी सुन वृषभान नन्दिनी
पाँव पयोदहि धाई
पाँव पयोदहि धाई
श्याम ने मनहर बंशी बजाई
सूर श्याम की अद्भुत लीला
कहँ लग करौं बड़ाई
कहँ लग करौं बड़ाई
श्याम ने मनहर बंशी बजाई
भावार्थः श्याम (श्री कृष्ण) मन को हर लेने वाली बंशी बजाई। बंशी की धुन में मगन हो कर भगवान सूर्य का रथ मंडल में ही अटक गया और समय थम गया। पुष्पक विमान ऐसा मगन हुआ कि धरती पर आकर गिर गया। वृषभान नन्दिनी (श्री राधे जी) बंशी की धुन को सुनकर (श्री कृष्ण की ओर) पाँव पाँव ही (बगैर किसी सवारी के) दौड़ने लगीं। सूरदास जी कहते हैं श्याम की लीला अद्भुत है, मैं कहाँ तक उसकी बड़ाई करूँ!
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